Thursday, September 10, 2020

रूह

दम सा घुट रहा है अब इस ज़हान में
सांस भी नही ली जा रही खुले आसमान में
आँशु भी निकलते नही है
ओर देखूं उसे तो रुकते नही है
तलाश किसी की नही है अब,
फिर भी रूह ऐसे बैठक रही है
शायद मेरी ही शख्सियत मुझे बहुत खटक रही है
चीखना भी बहुत जोर से....
पर खामोशी भी चाहती है
न जाने ये ज़िन्दगी मेरी 
मुझसे अब क्या चाहती है

-Ur\/!✍️

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